लेखनी कहानी - मां और माता
मां और माता...
"चलो चलो, जल्दी करो। माता का सारा भोग बन गया है ना। चलो फिर, कन्याओं को भोजन कराओ।" बोलते हुए अवनी की सासू मां हड़बड़ा रही थीं। बड़े ही विधि विधान के साथ पूजा करती हैं वो। कोई कमी नहीं छोड़ती, दुर्गा स्तुति, दुर्गा, आरती ,दुर्गा सप्तशती, और भी अन्य मंत्रोच्चार से भक्ति में लीन रहती हैं। इस बार भी पूरे नवरात्रों को उपवास किया था उन्होंने।
आज नौमी की दिन अष्ट कन्याओं को भोजन कराना था। इसलिए अवनी सुबह 4 बजे से उठकर सारा खाना बनाने में जुटी हुई थी। उसकी 7 महीने की बेटी अनन्या अभी सो रही थी। जैसे ही कन्याओं को भोजन परोसने लगी तभी अनन्या के रोने की आवाज सुनाई दी।
अवनी उठकर जाने लगी तो सासू मां ने रोका, "अरे, कहां जा रही है? पहले खाना तो परोस दे, ये कन्याएं माता का रूप हैं। ऐसे बीच में छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगता।
अवनी ने जल्दी जल्दी सबको खाना परोसा और जल्दी से जाकर अपनी लाडली को गले लगाया और दूध पिलाने लगी। सोकर उठी थी अनन्या, इसलिए भूख से रो रही थी।
उधर, सभी कन्याएं भोजन कर जाने लगी तो फिर सासू मां बड़बड़ाते हुए बोली, "अरे कहां रह गई? कन्या माता जा रही हैं, इनके पैर तो पूज ले।"
अवनी ने अंदर से कहा," मम्मी जी, आप पूज लीजिए इन कन्याओं के पैर, मेरी माता रानी तो अभी भोजन जीम रही है। उसे छोड़ कर मैं नही आ सकती।"
इतना बोल कर अवनी उसके सीने से चिपकी, दूध पीती अपनी लाडली को निहारने लगी। एक मां, ममता और श्रद्धा से अपनी माता रानी को भोग लगा रही थी।
प्रियंका वर्मा
4/10/22
Gunjan Kamal
07-Oct-2022 08:36 AM
यथार्थ चित्रण
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Seema Priyadarshini sahay
06-Oct-2022 05:28 PM
बहुत खूबसूरत
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Kaushalya Rani
05-Oct-2022 09:36 PM
Nice post 👍
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